कपूरथला के सुजात की कहानी: कचरे से रोजगार की ओर एक कदम
यह कहानी है सुजात जी की, जो मूलतः तो पश्चिम-बंगाल के रहने वाले हैं लेकिन रोजी रोटी की तलाश उन्हे पंजाब के व्यास जिले ले आई और अब यहीं अपने परिवार के साथ बस चुके हैं। शुरुवात मे सुजात जी ने कबाड़ का व्यवसाय शुरू किया, जिसमे यह इधर उधर से कबाड़ चुन कर या फिर लोगों से खरीद कर किसी बड़े कबाड़ व्यवसायी को बेचकर अपना और अपने परिवार का पेट पाल रहे थे, लेकिन यह आमदनी भी जरूरतों के हिसाब से बहुत कम थी परिवार का गुजर बसर बड़ी मुश्किल से हो रहा था।
ऐसे ही एक दिन जब सुजात जी गाँव मे कबाड़ बिनने गए हुए थे तो वहाँ इनकी मुलाकात हुई आईटीसी मिशन सुनहरा कल और फिनिश सोसाइटी की टीम से, थोड़ी चर्चा के बाद हमारी टीम को पता चला की सुजात जी किस प्रकार से कबाड़ बिन कर और कितनी मुश्किलों से अपने घर परिवार का गुजर बसर कर रहे हैं।
आईटीसी मिशन सुनहरा कल कार्यकर्म का उद्देश्य है की लोगों को रोजगार की नई संभावनाओ के साथ जोड़ा जा सके, इसके लिए हमारी टीम ने जब इनसे इस बारे मे बात करी की यदि इन्हे ऐसे अवसर उपलब्ध कराए जाए जहाँ ये एक नियमित आमदनी कर सकते हैं तो सुजात जी झट से तैयार हो गए। इनको रोजगार के किसी अवसर से जोड़ने के लिए मिशन सुनहरा कल और फिनिश सोसाइटी की टीम ने एक योजना बनाई, यह प्लान किया की यदि गाँव नूरपुर ज़्ट्टा के प्रत्येक परिवार से यह कूड़ा संकलन करना शुरू कर दें जिसके लिए हर परिवार से यह कुछ शुल्क ले सकें तो एक साथ दो समस्याओं पर सफलता मिलेगी जहाँ एक और सुजात के लिए एक रोजगार का अवसर उपलब्ध होगा वहीं दूसरी और गाँव से कूड़ा इकट्ठा करने और उसे प्रबंधन क्षेत्र तक पहुँचाने की समस्या भी सुलझ जाएगी। जब सुजात से पूछा गया की क्या वह तैयार है तो सुजात जी ने कहा की वो हर घर से कूड़ा इकट्ठा करने को तो तैयार है लेकिन क्या लोग भुगतान करेंगे तो इनके इस संशय को दूर करने के लिए टीम मिशन सुनहरा कल और फिनिश सोसाइटी ने मोहल्ला कमेटी के साथ बैठक कर इस बारे मे चर्चा की और यह सुनिश्चित किया गया हर घर से सुजात जी 50 रुपये महिना शुल्क लेंगे और साथ ही मिलने वाले रिसाइकलेबल समान को कबाड़ मे बेच सकते हैं।
इसके बाद अगला कदम था, मोहल्ले के लोगों से सुजात का परिचय स्थापित करवाना और लोगों से उन्हे भुगतान दिलवाना, शुरुवात मे कुछ लोगों ने इसका प्रतिवाद किया, वो नहीं समझ रहे थे की क्यूँ किसी को पैसा दे कूड़ा इकट्ठा करने के लिए, क्यूंकी अभी तक उन्हे आदत जो थी यहाँ वहाँ कचड़ा फेंक देने की, लेकिन सब की सोच एक जैसी नहीं होती, बहुत से लोगों ने इस प्रयास मे मिशन सुनहरा कल का भरपूर साथ दिया और फिर धीरे-धीरे टीम के प्रयासों से शुरुवात मे प्रतिवाद करने वाले लोग भी अब बदल गए और आज मोहल्ले के हर घर से कचड़ा सुजात जी को ही दिया जा रहा है।
और जब सब सुचारु रूप से हो गया तब सुजात अपना अनुभव बताते हुए कहते हैं की
“मैंने गांव में घर-घर जाकर के कचरा इकट्ठा करने का काम की शुरुवात की, शुरू में कुछ लोगों ने कचरा नहीं दिया लेकिन धीरे-धीरे टीम के द्वारा समझाने पर सभी घरों ने कचरा देना चालू कर दिया और आज इससे मुझे 10 से 12 हजार रुपये प्रतिमाह तक की आमदनी हो जाती है, जिससे मेरे परिवार का खर्चा अच्छी तरह से चल रहा है, और मैं एक अच्छा जीवन यापन कर रहा हूँ”।
सुजात जैसे ही हमारे साथियों की सफलता की यह कहानियाँ ही तो हमारा हौसला बढ़ाती हैं।