परिवर्तन की खेती: हरदोई के बारी गांव में जैविक खेती का प्रभाव
आधुनिक कृषि के निरंतर विकास के साथ, कृषि उत्पादन में जैविक उर्वरकों की भूमिका और भी महत्वपूर्ण होती जा रही है। जैविक उर्वरकों से उगाए गए कृषि उत्पादों का स्वाद अच्छा होता है और ये फलों और सब्जियों के अनूठे पोषण और स्वाद को प्रभावी ढंग से बनाए रख सकते हैं, और मिट्टी की सुरक्षा और सुधार में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यूएमपी (उपजाऊ माटी परियोजना) कार्यक्रम के तहत डीसीएम श्रीराम फाउंडेशन और फिनिश सोसाइटी ने मिट्टी में जैविक कार्बन बढ़ाने की पहल की हरदोई जनपद में की है।
उपजाऊ माटी परियोजना छोटे और मध्यमवर्गीय किसानों के लिए उम्मीद की एक नई ज्योति प्रज्वलित कर रहा है। उद्देश्य सरल लेकिन परिवर्तनकारी है: जैविक खेती प्रथाओं को प्रोत्साहित करना और इसके माध्यम से ग्रामीणों की आजीविका का उत्थान करना।
इस संदर्भ में एक उल्लेखनीय कहानी एक छोटे से गाँव बारी की है जहाँ इस कार्यक्रम ने एक क्रांति ला दी है। इस गाँव में कार्यक्रम की शुरुवात से पहले जैविक खाद बनाने की यह विधि इस गाँव के लिए लगभग अनसुनी थी। गाँव के अधिकतर लोग सीमांत किसान हैं, जिनके लिए एक फसल की सही उपज प्राप्त करने के लिए रासायनिक उर्वरक ही एक मुख्य साधन होता है, जो की पूरी फसल के पैदावार लेने तक लगाई गई लागत का एक बाद हिस्सा होता है, जब यहाँ किसानों से बात की गई तो यह पता चल की अधिकतर किसानों द्वारा पशुपालन भी किया जाता है, और पशुओं के गोबर को घूरों पर इकट्ठा किया जाता है जो की एक से दो साल में कम्पोस्ट में परिवर्तित होता है, इसके अतिरिक्त कृषकों को जैविक खाद बनाने की किसी अन्य विधि का ज्ञान नहीं था।
कार्यक्रम टीम द्वारा सभी किसानों से मिलकर उन्हे विंडरो कंपोस्टिंग एवं इनोकुलम के उपयोग के बारे में जागरूक करना शुरू किया गया इसी क्रम में रणजीत सिंह,जो की अपनी फसलों की पैदावार के लिए पूर्णतया रासायनिक उर्वरकों पर निर्भर थे। हालाँकि, इन रासायनिक उर्वरकों की उच्च लागत उन्हे परेशान करती थी साथ ही उनकी मिट्टी की उर्वरता कम हो रही थी और पानी का उपयोग बढ़ रहा था। जैविक खाद के बारे में जानकारी मिलते ही इन्होंने प्रेरित होकर, रासायनिक उर्वरकों को अलविदा कहकर अपनी खुद की जैविक खाद बनाना शुरू कर दिया। अमरूद, नींबू और हल्दी से सजा उनका खेत उल्लेखनीय परिणामों का गवाह बना। जैविक खाद और इनोकुलम के उपयोग से, उनके फलों के पेड़ खिल गए, अमरूद बहुतायत में फले-फूले और सिर्फ एक महीने में ही हल्दी उग आई । नींबू के पेड़ों से इतनी अधिक पैदावार हुई कि सभी नींबूओं को गिनना चुनौतीपूर्ण था। ये निर्विवाद परिणाम आज जैविक खाद की क्षमता के प्रमाण के रूप में खड़े हैं।
इस परिणाम से उत्साहित एक अन्य कृषक विजेंदर सिंह इतने प्रेरित हुए कि उन्होंने एक जैविक खाद कारखाना स्थापित कर दिया- जो की सामाजिक व्यवहार परिवर्तन का एक उत्तम उदाहरण है।
इसी क्रम में एक बिल्कुल विपरीत स्थिति में, हमारी मुलाकात एक अत्यंत गरीब किसान सावित्री देवी जी से भी होती है। अल्प साधनों के कारण वह डीएपी और यूरिया खरीदने में असमर्थ थी। जैविक खाद का परिणाम उनके इस दिशा में कदम बढ़ाने के लिए पर्याप्त था, केवल एक गाय होने के कारण पर्याप्त गोबर नहीं मिल रहा था जिस कारण उनके बच्चों ने बाहर से गाय का गोबर इकट्ठा किया। एक समय जहाँ इनकी फसलें बीमारियों, दीमकों के प्रकोप और पीली पत्तियों से पीड़ित थीं। वहीं अब जैविक खाद की शुरूआत ने उनके खेतों का परिदृश्य ही बदल दिया। पहली जैविक खाद वाली फसल में ही उसने देखा कि ये समस्याएं काफी हद तक कम हो रही हैं, जिससे उसके संघर्षरत जीवन में आशा की एक किरण आई है।
उपजाऊ माटी परियोजना कार्यक्रम के अंतर्गत बारी गाँव में न सिर्फ ये ठोस उदाहरण प्रस्तुत लाभ किए हैं, बल्कि तीन निराश्रित परिवारों के लिए एक नई आशा भी जगाई है, जिन्होंने विंडरो कंपोस्टिंग को अपनाया है, जिसने उन पर पड़ने वाला आर्थिक बोझ कुछ कम किया, फसल की गुणवत्ता में सुधार कर कार्यक्रम के लिए एक प्रतीक के रूप में भी काम किया है, जो समुदाय को जैविक खेती के गुणों के बारे में बताता है।