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बागवानी की दीवानी: सोहन कुँवर जी की प्रेरक कहानी

यह कहानी है सोहन कुँवर जी की, जो राजस्थान के डूंगरपुर जिले की रहने वाली हैं। डूंगरपुर में सोहन जी अपने पति डॉक्टर चन्द्र प्रकाश पवार जी के साथ रहती हैं। बचपन से ही सोहन जी का कृषि कार्यों में गहरा लगाव रहा है। अपने पिता की कृषि में मदद करते-करते उन्हें बागवानी का ऐसा शौक लग गया, जो आज तक बरकरार है। आज भी, उनके घर की खाली पड़ी भूमि पर तमाम तरह के फूल और पौधे लगे हुए हैं, जिन्हें वह अपने बच्चों के समान प्यार करती हैं।
डॉ. पवार जी बताते हैं कि जब भी सोहन जी कहीं बाहर जाती हैं, तो उनके पास एक कैंची और झोला अवश्य होता है। कोई फूल या पौधा जो उन्हें पसंद आता है, उसकी कलम या वह पौधा अपने बाग के लिए ले आती हैं। इस प्रकार उनका बगीचा हर दिन और समृद्ध होता जा रहा है। यहाँ तक कि उन्होंने अपने पड़ोसियों से भी कह रखा है कि अपने घर का निकलने वाला गीला कूड़ा उन्हें दे दें, ताकि वह खाद बना सकें।
सोहन जी ने अपने बगीचे में प्रयोग के लिए जैविक खाद का निर्माण भी घर में ही करना शुरू कर दिया है। घर में उत्पन्न होने वाले गीले कूड़े से खाद बनाने की कला उन्होंने FINISH Society के नरेंद्र शर्मा जी, लखन पँवार जी से सीखी और दिल्ली के प्रवीण मिश्र जी, जो यूट्यूब के माध्यम से जैविक खाद बनाने की ट्रेनिंग देते हैं, से प्रेरणा प्राप्त की।
उम्र के इस पड़ाव पर, जब अधिकतर लोग रिटायर होकर अपने बच्चों के साथ आनंद और आराम करते हैं, सोहन कुँवर जी अपने बगीचे और जैविक खाद निर्माण में व्यस्त हैं। वह न केवल अपने बगीचे को समृद्ध कर रही हैं, बल्कि अपने पर्यावरण के प्रति भी अपने कर्तव्यों को निभा रही हैं। सोहन जी निस्वार्थ भाव से FINISH Society के द्वारा डूंगरपुर नगर परिषद के साथ किए जा रहे कार्यों में भी सहयोग दे रही हैं। वह टीम के साथ विभिन्न गतिविधियों में शामिल होकर लोगों को घर के गीले कूड़े से जैविक खाद बनाने की तकनीक सिखा रही हैं और उन्हें अपने घर में बगीचा या किचन गार्डन बनाने के लिए प्रेरित कर रही हैं।
सोहन जी का यह प्रयास पर्यावरण को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। वह न केवल अपने घर के बगीचे के लिए जैविक खाद बना रही हैं, बल्कि अपने सहेलियों और रिश्तेदारों के घर जाकर भी उन्हें सिखा रही हैं कि घर के गीले कूड़े से जैविक खाद कैसे बनाई जा सकती है। वह उन्हें समझाती हैं कि सब्जियों और फलों के छिलके, नारियल के छिलके, पेड़ पौधों की पत्तियाँ और डालियाँ, और अन्य जैविक अपशिष्टों से खुद ही खाद तैयार की जा सकती है।
यदि किसी को खाद बनाने में कोई समस्या होती है, तो सोहन जी उनकी मदद के लिए हमेशा तैयार रहती हैं। इस प्रकार, वह न केवल अपने पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैला रही हैं, बल्कि समाज में एक सकारात्मक बदलाव भी ला रही हैं। उनके इस निस्वार्थ योगदान के लिए डूंगरपुर नगर परिषद और FINISH Society की टीम उनकी बहुत सराहना करती है।
सोहन जी की यह कहानी हमें सिखाती है कि यदि हम चाहें, तो किसी भी उम्र में अपने पर्यावरण के प्रति अपना कर्तव्य निभा सकते हैं और अपने आस-पास के लोगों को भी इसके लिए प्रेरित कर सकते हैं। उनकी मेहनत और समर्पण न केवल उनके बगीचे को समृद्ध कर रहा है, बल्कि समाज को भी एक महत्वपूर्ण संदेश दे रहा है – “जैविक खाद से पर्यावरण को संजीवनी दें।”

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