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स्वच्छता की राह में: हरदोई के एक गाँव की जिंदगी बदलती कहानी

यह कहानी हमें सिखाती है की यदि जागरूकता और जानकारी का अभाव हो तो किस प्रकार से सोना भी पीतल के समान समझ लिया जाता है, ऐसा ही कुछ हुआ हरदोई जनपद के एक ग्राम पंचायत उतरा के एक छोटे से मजरे लक्षमण के पुरवा में, 99 परिवारों का एक छोटा से पुरवा जहाँ स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत लगभग हर घर में शौचालय का निर्माण हुआ था लेकिन आज भी गाँव में लोग खुले में शौच जाते दिख रहे थे।
हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में सफाई और स्वच्छता की स्थिति को बेहतर बनाने की दिशा में, हरदोई जनपद के ब्लॉक हरियावाँ में डी सी एम श्रीराम फाउंडेशन के सहयोग से फिनिश सोसाइटी द्वारा खुशहाली स्वच्छता कार्यक्रम चलाया जा रहा है और इसी कार्यक्रम के अंतर्गत जब फिनिश सोसाइटी की टीम अपने दैनिक कार्यक्रम के अंतर्गत इस गाँव का निरीक्षण किया तो पाया की अधिकांश घरों में शौचालय बने हुए हैं लेकिन इसके बाद भी लगभग 70 से 80% लोग खुले में शौच जा रहे थे, और यह बहुत ही अप्रत्याशित था। अपनी टीम के साथ पूरे गाँव का भ्रमण कर स्थिति को समझने की कोशिश की गई और यह पाया गया की जिन घरों मे शौचालय बने हुए थे वो लोग अपने शौचालयों मे कहीं कंडे-उपले रख रहे थे तो कहीं लकड़ियाँ, कुछ लोगों ने तो इनमे बकरियाँ बांध रखी थी और जब हमारी टीम  ने इन सबसे इसका कारण जानना चाहा की आखिर क्यूँ वे लोग शौचालय का उपयोग इस तरह से कर खुद खुले में शौच जा रहें तो किसी के पास इसका जवाब नहीं था लेकिन अनेकों लोगों से बात करने पर यह समझ आया की क्योंकि काफी लंबे वक्त से इन्हे खुले में शौच जाने की आदत थी तो शौचालय का प्रयोग यह नहीं कर रहे थे और क्योंकि शौचालय का ढाँचा पक्का छतदार है इसलिए बारिश से सुरक्षा के लिए इसमे ईंधन के लिए कंडे और लकड़ी रखे जाने लगे और जानवर बाँधे जाने लगे।
शुरुवात में समझ नहीं आ रहा था की किस प्रकार लोगों को समझाया जाए इस उधेड़बुन मे हमारी टीम की मुलाकात हुई गाँव के ही सत्यपाल जी से जब इनसे इस बारे में बात की गई तो इन्होंने कहा की इनके परिवार में कोई नहीं हैं न बीवी न बच्चे, इसलिए क्या जरूरत है शौचालय के प्रयोग की और इसी सोच के साथ शौचालय में लकड़ी और अन्य समान रख कर ताला लगा दिया और स्वयं खुले में, कहीं भी शौच के लिए चले जाते हैं। काफी प्रयासों के बाद भी गाँव के लोग शौचालय के प्रयोग के बारे में समझने को तैयार न थे,

अब इतना तो समझ आ चुका था की लोगों को शौचालय इस्तेमाल करने के लिए जागरूक करना इतना आसान नहीं होने वाला, इसके लिए निरंतर प्रयास की आवश्यकता थी, अतः टीम की सदस्या प्रियांशी जी ने बदलाव का संकल्प ले लोगों को जागरूक करने में जुट गई बस इंतजार था पहली सफलता का।

टीम की सदस्या प्रियांशी जब जब  सत्यपाल जी से मिलती वो कहते “दीदी आप चाहे जो कह लीजिए लेकिन मैं तो शौचालय का उपयोग नहीं करूंगा क्योंकि जब तक खुले में न जाऊँ पेट साफ नहीं होता और सुबह सुबह खेतों की शुद्ध हवा भी मिलती है।

ऐसी बातें सुन प्रियांशी ने सबसे पहले सत्यपाल जी को समझाया की मानव मल अनेकों हानिकारक विषाणुओ और परजीवियों का वाहक होता है, जैस एकोई व्यक्ति किसी बीमारी से ग्रसित है खासकर, टाईफाइड, हैजा कालरा आदि तो मानव मल के साथ इस बीमारी के विषाणु खेतों मे और फिर वहाँ से किसी पानी के स्रोत से मिलकर हम तक पहुँचता है, और किस प्रकार खुले में पड़े मानव मल पर भिनभिनाती मक्खीयां उड़ कर भोजन पर आती हैं, इतना ही मान लीजिए कभी किसी अंधेरी बरसाती रात में आप बाहर जाएं और कोई विषैला जन्तु काट ले तो क्या हो,और अंत में जब प्रियांशी ने जब कहा की जरूरी नहीं आप शौच दूर कर आए और अब आप बीमार नहीं पड़ेंगे लेकिन ऐसा अवश्य होगा की उसकी वजह से कोई बच्चा बीमार हो, हो सकता है इस बीमारी से कोई माँ अपना बच्चा खो दे या बच्चे अपने माता या पिता तो क्या ऐसे किसी की मृत्यु का कारण बनना चाहेंगे, बस इतना सुन सत्यपाल जी ने तुरंत अपने शौचालय मे रखे कंडे, लकड़ी को बाहर निकाला और उसे उपयोग लायक तैयार कर दिया और शपथ ली की अब से वो खुले में शौच नहीं जाएंगे।
इस पहली सफलता ने टीम के हौसले बुलंद कर दिए और अब तो सत्यपाल जो की गाँव के ही व्यक्ति थे उनका सहयोग भी मिलने लगा, सत्यपाल प्रियांशी को दीदी कह कर संबोधित करने लगे और साथ ही उनके साथ घर घर जाकर लोगों को शौचालय साफ कर उसका प्रयोग करने को जागरूक करने लगे, किसी दिन प्रियांशी किसी अन्य गाँव के दौरे पर हों तो भी सत्यपाल एक स्वयंसेवी के तौर पर गाँव के लोगों को समझाते हैं और यहाँ तक की किसी का शौचालय बंद है तो उसकी पूरी मदद करते हैं उस शौचालय को फिर से प्रयोग लायक बनाने में,
यह तो फिनिश सोसाइटी टीम के अथक प्रयास का नतीजा है की अब लक्षमनपुर गाँव के सभी लोग यह बातें समझने लगे हैं और अपने अपने शौचालय का जीर्णोद्धार कर उसका उपयोग करना शुरू भी कर दिया है।

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