हरदोई में माहवारी स्वच्छता प्रबंधन हेतु – एक अनोखी पहल
यह कहानी है लखीमपुर जनपद के पसगवां ब्लॉक के जसमढी ग्राम पंचायत के एक छोटे से मजरे नेवादा की, इस छोटे से गांव की दूरी जिला मुख्यालय से 75 किलोमीटर और ब्लॉक से 5 किलोमीटर है। डीसीएम श्रीराम फाउंडेशन के सहयोग से चल रहे खुशहाली स्वच्छता कार्यक्रम के अंतर्गत हमारी उद्देश्य इस गाँव की किशोरियों और महिलाओं में माहवारी स्वच्छता प्रबंधन के बारे में जागरूकता फैलाना था।
श्रीमती विमला देवी जो की गाँव की प्रधान हैं, हमारे साथ गांव की स्थिति के बारे में बात की और दिखाया कि गांव की आर्थिक स्थिति बहुत ही बुरी थी, किशोरियाँ और महिलायें पैड के साथ-साथ कपड़े का भी प्रयोग करना पड़ रहा था । उन्होंने हमें दिखाया कि गांव में प्रयोग किए हुए पैड और कपड़े यहाँ- वहाँ खुले में, खेतों और नालियों में पड़े हुए थे। शायद ही कुछ लोग ऐसे थे जो गड्ढा खोदकर पैड और कपड़े दबा रहे थे, लेकिन अधिकांश पैड और कपड़े खुले में फेंक दिये जाते थे। उन्होंने यह भी दिखाया कि गांव के जानवर भी पैड और कपड़े को चबा लेते थे, जिससे वे बीमार हो जाते थे और पर्यावरण भी दूषित हो रहा था।
श्रीमती विमला इस बात से अधिक चिंतित थी क्यूंकि वो स्वयं महिला हैं और माहवारी स्वच्छता के बारे में वो विशेष प्रयास करना चाह रही थी, वो जानती थी की जहाँ एक ओर इस बारे में किसी को भी पर्याप्त जानकारी का अभाव है वहीं कोई भी इस बारे में बात करना नहीं चाहता, यहाँ तक की महिलायें भी आपस में इस बारे में चर्चा करने में शरमाती हैं, जिस कारण गाँव की महिलाओं और किशोरियों को स्वास्थ्य संबंधी अनेकों समस्याएं होती हैं। इस स्थिति में विमला जी कुछ ऐसा चाहती थी जिससे माहवारी के बारे में चर्चा को लेकर झिझक को खत्म करने के साथ साथ ही गाँव में स्वच्छता की स्थिति को भी सुधार सकें।
हमारी टीम की सदस्या प्रियांशी पटेल ने विमला जी के साथ मिलकर किशोरी बालिकाओं और महिलाओं को एक साथ बुलाया, उन्हें माहवारी स्वच्छता, माहवारी के दौरान पैड के प्रयोग का महत्व और पैड के उचित निपटान के बारे में जानकारी दी और समझाया कि हमारे जीवन में इसका महत्व क्या है। पहली बार में, अधिकतर किशोरीयों और महिलाओं ने इसे नहीं समझा, और इसी दुविधा में थी की पैड तो बहुत महंगा होता है और फिर गड्ढा खोद कर इसए दबाया जाए और कोई देखेगा तो क्या कहेगा, रात में प्रयोग किए हुए पैड को ऐसे ही फेंक देने से किसी को पता भी नहीं चलेगा।
इसी असमंजस की स्थिति में गाँव की ही एक किशोरी सुनीता जो की दिव्यअङ्ग भी हैं वो सामने आई, सुनीता पढ़ाई लिखाई में बहुत तेज और एक होनहार किशोरी है और , सुनीता ने हमसे मिलकर पैड और कपड़े के उचित निपटान कैसे करना है, इसके बारे में पूरी जानकारी ली प्रियांशी जी ने उसे बताया की चाहे कपड़ा हो या पैड प्रयोग के बाद उसे एक गड्ढा खोदकर उसमे डाल गड्ढा भर दो। यह सुनकर उसने कहा “दीदी आप चिंता न करो, मैं आपकी बात समझ गई हूँ और जो महिलायें और किशोरियां मुझे मिलेंगी मैं उन सबको ये सिखाऊँगी”। सुनीता और विमला जी ने हमारे बताए तरीके को अपनाया और गांव की अन्य महिलाओं और किशोरियों को भी दिखाने लगी। क्यूंकि उनका मिलना मजरे की सभी महिलाओं लगभग रोजाना ही हो जाता था और जब हमारा संदेश प्रतिदिन उन सब तक पहुँचता और उनकी दुविधाओं का समाधान तुरंत मिलता शीघ्र ही गाँव की अधिकांश महिलाओं एवं किशोरियों ने हमारे बताए गए सुझाव अपनाना शुरू कर दिया और देखते ही देखते इस छोटे से मजरे का परिदृश्य पूर्णतया बदल गया। खुले में फेंके जा रहे पैड अब कहीं नहीं दिखते।
और अब जब भी हमारी टीम की सदस्या प्रियांशी पटेल उस गाँव जाती तो, उन्हे दूर से आता देखकर पहचान लिया जाता, और गाँव की किशोरियाँ अपने परिजनों से यह कहते हुए मिलाते कि यह वही दीदी हैं, जिन्होंने माहवारी स्वच्छता प्रबंधन के बारे में उन्हें जागरूक किया।
“प्रियांशी अपने अनुभव साझा करते हुए कहती हैं की जब मैं इस गाँव पहुँचती हूँ तो देखती हूँ कि गांव की सभी किशोरी बालिकाएं और महिलाएं पैड और कपड़े के सही तरीके से निपटान कर रही हैं। यह देखकर मुझे बहुत खुशी होती है।“
गांव की सभी किशोरी बालिकाओं और महिलाओं को बताया गया कि वे किसी भी समस्या के साथ हमसे संपर्क कर सकती हैं और हम उनकी मदद करेंगे। गांव की प्रधान श्रीमती विमला देवी और सुनीता जैसे स्वयंसेवियों की मदद ने ही आज गाँव के परिदृश्य में बदलाव किया है।