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शर्मा परिवार के टेरेस गार्डन की अद्भुत कहानी

उदयपुर राजस्थान के वॉर्ड नंबर 56 में श्रीमती गीता शर्मा और उनके बेटे लक्की शर्मा ने स्वच्छता और कचरा प्रबंधन को बढ़ावा देकर अपने मोहल्ले में एक मिसाल कायम की है। उनकी यह प्रतिबद्धता न केवल स्वच्छता के प्रति जागरूकता बढ़ा रही है, बल्कि पड़ोसियों और रिश्तेदारों के लिए भी प्रेरणा बन गई है।

गीता शर्मा, अपनी मोहल्ला समिति की एक सक्रिय सदस्य के रूप में, कचरा प्रबंधन के प्रयासों में सबसे आगे हैं। वह समिति के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर कचरे को सही तरीके से अलग करने, घर पर ही खाद बनाने और स्वच्छता बनाए रखने के महत्व पर जागरूकता फैलाने का काम करती हैं। उनका व्यावहारिक दृष्टिकोण न केवल निवासियों को शिक्षित करता है, बल्कि उन्हें अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए भी प्रोत्साहित करता है।

दूसरी ओर, उनका बेटा लक्की शर्मा मोहल्ले के युवाओं को स्वच्छता और साफ-सफाई के प्रति जागरूक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। वह युवाओं को कचरा अलग करने और पुनर्चक्रण (रीसाइक्लिंग) की आदतें अपनाने के लिए प्रेरित करता है। लक्की के प्रयासों से कई लोग घर पर कचरे का सही तरीके से प्रबंधन करने लगे हैं, जिससे उनके इलाके की स्वच्छता में बड़ा योगदान हो रहा है।

लेकिन जो बात शर्मा परिवार को सबसे अलग बनाती है, वह है उनकी बागवानी का शौक, जो उनके घर की छत पर बने सुंदर टैरेस गार्डन में झलकता है। लक्की ने अपनी रचनात्मक सोच से अपने दुकान से निकले प्लास्टिक के डिब्बों और बोतलों को गमले के रूप में इस्तेमाल किया, जिससे छत को एक हरित स्वर्ग में तब्दील कर दिया। गार्डन की सजावट इतनी मनमोहक है कि जब भी कोई रिश्तेदार या मेहमान उनके घर आता है, तो सबसे पहले छत पर जाकर इस अद्भुत गार्डन को देखने जरूर जाता है।

यह टैरेस गार्डन केवल पौधों का एक संग्रह नहीं है; यह परिवार की स्थिरता और पर्यावरण के प्रति समर्पण का प्रतीक है। लक्की ने बेकार समझी जाने वाली चीजों को खूबसूरत गमलों में बदल दिया, जिससे न केवल खर्च बचा, बल्कि गार्डन को एक व्यक्तिगत और अद्वितीय स्पर्श भी मिला। हर कोना इतनी खूबसूरती से सजा हुआ है कि लोग इसकी तारीफ किए बिना नहीं रह पाते।

गीता शर्मा ने अपने टैरेस गार्डन को और समृद्ध बनाने के लिए घर के गीले कचरे से खाद बनाना शुरू किया है। उन्होंने फिनिश सोसाइटी टीम से खाद बनाने की कला सीखी, और अब अपने किचन के कचरे को जैविक खाद में बदलकर अपने पौधों को पोषण देती हैं। इस तरह, उनका गार्डन आत्मनिर्भर और पर्यावरण के अनुकूल हो गया है, जिससे कचरे की मात्रा भी कम होती है और पौधों को जैविक खाद भी मिलती है।

शर्मा परिवार का टैरेस गार्डन अब एक स्थानीय आकर्षण बन चुका है। पड़ोसी, रिश्तेदार और दोस्त अक्सर इसे देखने आते हैं और इसकी खूबसूरती से प्रेरित होते हैं। प्लास्टिक के डिब्बों और बोतलों में उगे पौधों की हरियाली और सजावट देखकर हर कोई हैरान हो जाता है। यह गार्डन सिर्फ एक बगीचा नहीं है; यह एक चर्चा का विषय बन गया है, जहां पर्यावरण संरक्षण और स्वच्छता पर खुलकर बातचीत होती है।

गीता और लक्की शर्मा की यात्रा कचरे से इस खूबसूरत टैरेस गार्डन तक यह दिखाती है कि छोटे-छोटे प्रयास बड़े बदलाव ला सकते हैं। उनकी मेहनत सिर्फ व्यक्तिगत स्तर तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामुदायिक सेवा और पर्यावरण की रक्षा का भी प्रतीक है। उनके इस प्रयास ने न केवल उनके घर को सुंदर बनाया है, बल्कि उनके मोहल्ले के लोगों के दिलों में भी बदलाव के बीज बो दिए हैं।

उनकी कहानी इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि कैसे एक व्यक्ति की पहल पूरी समुदाय में सकारात्मक बदलाव ला सकती है। जैसे-जैसे गीता और लक्की अपने टैरेस गार्डन को और निखार रहे हैं, वैसे-वैसे वे स्थिरता की एक नई संस्कृति को भी बढ़ावा दे रहे हैं, जो हर पौधे, हर मुलाकात, और हर बातचीत के साथ बढ़ती जा रही है।

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