स्वच्छता के प्रति ऐसी दीवानगी बनी करौली के लिए उदाहरण
सनेट गाँव, जो राजस्थान के करौली जिले में एक स्वच्छ आदर्श गाँव है, यही गाँव है बलवीर सिंह चौधरी का, जो की स्वच्छता के प्रति अपने लगाव के कारण आज लोगों के बीच एक आदर्श बन गए हैं। स्वच्छता के लिए उनकी प्रतिबद्धता का स्तर बहुत अधिक है, यहाँ तक की अगर इनके परिवार का कोई सदस्य साफ सफाई के मामले मे लापरवाही करता है, तो यह घर मे तूफान खड़ा कर देते है।
बलवीर, जिनका जन्म 1992 में हुआ था, अपने भाई-बहनों में सबसे बड़े थे, लेकिन उनकी कमजोर आर्थिक स्थिति ने उन्हें बहुत कम उम्र में ही जीविका चलाने के लिए अपने पेरो पर खड़ा होने को मजबूर कर दिया। 10वीं कक्षा के बाद उन्हें अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी क्योंकि परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। कड़ी मेहनत के बल पर, उन्होंने अपने परिवार की आर्थिक स्थिति में काफी सुधार किया, और 2008 से 2012 के दौरान उन्होंने फरीदाबाद में उन्हें नौकरी मिल गई और बलबीर जी वही बस गए। लेकिन सन 2012 में, छुट्टी के दौरान जब बलबीर जी अपने गाँव आए तो उन्होंने देखा की गाँव मे साफ सफाई की स्थिति बहुत ही दयनीय है, एक ओर शहर जो अपनी स्वच्छता और सफाई को लेकर जाने जाते है वही गाँव की स्थिति इतनी दयनीय क्यू, बस इसी सोच मे और गाँव की स्थति को बेहतर करने का स्वप्न लिए बलबीर जी ने यहीं रहने और काम पर नहीं लौटने का फैसला कर लिया।
समय बीता और अपने लक्ष्य मे बलबीर जी काफी सफल भी हुए जब उनको अपने ग्राम सरपंच मित्र का सहयोग मिला, जब फिनिश सोसाइटी ने सनेट में स्वच्छता कार्यक्रम शुरू किया और हमारे सहयोगी राजेंद्र सिंह ने बलवीर सिंह से मुलाकात की, तो बलवीर सिंह ने एक स्वयंसेवक के रूप में स्वच्छता के लिए इस पहल का एक प्रमुख सदस्य बनने का फैसला किया। उन्होंने गाँव को और अधिक सुंदर और स्वच्छ बनाने के लिए ग्रामीणों को प्रेरित करना शुरू किया।
इसी दौरान एक बार बलबीर जी ग्राम पंचायत के सरपंच के साथ गोवर्धन परिक्रमा के लिए मथुरा गए। रास्ते में उन्होंने देखा कि लोग अपने प्रियजनों,भगवान, पत्नी, प्रेमिका आदि के नाम पर टैटू गुदवा रहे हैं। बस इसी वक्त उन्होंने महसूस किया कि स्वच्छता उनका जीवन भर का प्यार है और अपने गाँव को सुंदर बनाना लक्ष्य, इसलिए उन्होंने अपने हाथों मे ‘क्लीन सनेट’ टैटू गुदवा लिया, भले ही उसका अपनी पत्नी के साथ स्वच्छता के प्रति जुनून के लिए झगड़ा हुआ लेकिन वे भी अपने पति के इस कार्य प्रभावित हुए बिना न रह पाई। उस दिन से, उनकी प्रतिबद्धता का स्तर और भी ऊंचा हो गया और खुद को परियोजना गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल कर लिया और देर रात तक व्यस्त रहने लगे। एक दिन वह संस्था द्वारा आयोजित रात्री चौपाल मे सम्मिलित होकर देर से घर पहुंचे, इनकी पत्नी प्रतीक्षा कर रही थी क्योंकि अब तो यह उसकी आदत बन गई थी। बलबीर जी अपनी पत्नी से कहा कि रात के खाने के बाद बचे हुए सभी बर्तनों को साफ कर लें और सोने से पहले कचरे को अलग कर दे, क्युकी रात अधिक हो चुकी थी और काफी देर से इनकी पत्नी ने इनका इंतेजार किया था इसलिए इनकी पत्नी ने गुस्से में बर्तन साफ नहीं किए, बल्कि कचरे को भी अलग करने से भी मना कर दिया। जब बलवीर ने इस अवहेलना को देखा तो वह घर से बाहर चला गया और कहा कि जब तक सारे बर्तन साफ नहीं हो जाते और कूड़ा अलग नहीं हो जाता, वह घर में वापस नहीं आएंगे।
शुरुआत में, उसकी पत्नी ने सोचा कि वे शांत हो जाएगे और थोड़ी देर के बाद अंदर आ जाएंगे लेकिन जिद पर अड़े बलवीर नहीं माने और घर के बाहर ही सो गए। आधी रात को इनकी पत्नी ने बर्तन साफ कर कचरे को अलग किया और अपने पति से अंदर आने को कहा तब कही जाकर हमारा हीरो घर मे आने के लिए तैयार हुआ।
उनके अड़ियल व्यवहार के बारे में पूछे जाने पर बलवीर इस सवाल को टाल जाते हैं, और गर्व से कहते हैं कि उनकी दोनो बेटियां गीले और सूखे कचरे में अंतर बता सकती हैं और अनुशासित रूप से प्रतिदिन उसका प्रबंधन करती है, जहाँ एक और घर में गीले कचरे के लिए कंपोस्टर रखा जाता है, जिसमें वे खाद बनाते हैं वही दूसरी और सूखे कचरे को कचरा संग्रहण करने आई गाड़ी में सौंप दिया जाता है।
कभी-कभी- जब उसकी पत्नी गीला और सूखा कचरा एक साथ रख देती है, तो इन दोनों मे बहस हो जाती है, लेकिन फिर बलबीर जी शांत हो जाते है और अपनी पत्नी को प्रेरित करते है कि, चूंकि उसने गाँव को एक स्वच्छ आदर्श गाँव में बदलने का संकल्प लिया है, यह यह तब तक संभव नहीं है जब तक की उनके परिवार के व्यवहार मे भी बदलाव न हो। उनका अपना घर, उनकी पत्नी उनकी प्रशंसक बन गई हैं और उनका भरपूर समर्थन करती हैं और दोनों मिलकर स्वच्छता के इस संकल्प को पूरा करते हैं। आज गाँव मे कोई अगर अपने घर से कूड़ा फेंकने की कोशिश भी करता है तो सभी बलबीर जी और उनके परिवार का उदाहरण देते हैं